21वीं सदी का सबसे बड़ा वैज्ञानिक मुकाबला अब स्पेस रेस बन चुका है। पहले अमेरिका और सोवियत यूनियन में यह दौड़ थी, लेकिन अब नया खिलाड़ी है – भारत का ISRO (Indian Space Research Organisation)। आज NASA, China (CNSA) और ISRO तीनों देश अंतरिक्ष में अपने-अपने मिशन से भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। सवाल यह है कि 2025 में कौन सबसे आगे है?
🌍 NASA: सुपरपावर लेकिन चुनौतियों के साथ NASA आज भी दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी है।
2025 में उनका मुख्य फोकस है –
- Artemis Mission (मनुष्यों को चाँद पर वापस भेजना)।
- Mars Mission (मानव मिशन की तैयारी)।
- नई Space Station बनाने की योजना, क्योंकि ISS पुरानी हो रही है।
लेकिन अमेरिका में बजट और राजनीतिक दबाव NASA को धीमा कर रहा है।
🇨🇳 China: चाँद पर स्थायी ठिकाना बनाने की तैयारी चीन की स्पेस एजेंसी CNSA ने पिछले 10 सालों में जबरदस्त प्रगति की है।
2025 तक उनका लक्ष्य है –
- चाँद पर Research Station बनाना।
- Mars Sample Return Mission।
- खुद का Space Station (Tiangong) जिसे वे लगातार विस्तार दे रहे हैं।
चीन ने चाँद के “Far Side” पर सफल लैंडिंग करके दुनिया को चौंका दिया था।
🇮🇳 ISRO: कम बजट, लेकिन बड़ा सपना
ISRO की खासियत है – कम बजट में बड़े काम।
2025 में भारत का फोकस है –
- Gaganyaan Mission → भारत का पहला मानव मिशन अंतरिक्ष में।
- Chandrayaan-3 की सफलता के बाद अगले Lunar Missions।
- Aditya L-1 Mission → सूरज की Study।
- AstroSat-2 और Mars Mission 2 की तैयारी।
ISRO आज दुनिया का भरोसेमंद लॉन्च पार्टनर भी बन चुका है (PSLV और GSLV की मदद से)।
⚖️ तुलना: ISRO vs NASA vs China
पहलू NASA China (CNSA) ISRO
बजट सबसे ज्यादा (24 Billion USD+) मध्यम (11 Billion USD+) बहुत कम (1.5 Billion USD+)
फोकस चाँद, मंगल, Space Station चाँद पर बेस, मंगल मिशन Gaganyaan, सूर्य, किफायती लॉन्च
ताकत टेक्नोलॉजी + Experience तेजी और Political Will Cost-Effective Innovation
चुनौती राजनीतिक दबाव, खर्चा अंतरराष्ट्रीय भरोसा बजट की कमी
🌌 निष्कर्ष
2025 की स्पेस रेस में NASA टेक्नोलॉजी में आगे है, China तेजी से दौड़ रहा है और ISRO स्मार्ट तरीके से कम पैसों में बड़ा काम कर रहा है।
भविष्य में यह रेस सिर्फ चाँद या मंगल तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह तय करेगी कि कौन सा देश अंतरिक्ष में नया नियम बनाएगा।
भारत के लिए गर्व की बात है कि कम संसाधनों के बावजूद ISRO ने दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है।